अमेरिका के साथ चाणक्य नीति शुरू: पुतिन आएंगे भारत

 अगस्त 2025 के अंत में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का भारत दौरा लगभग तय माना जा रहा है। एक तरफ अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत पर 50% तक टैरिफ का भारी वार किया है, वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए सीधी चुनौती दे दी है — वो भी बिना नाम लिए। यह कोई सामान्य घटनाक्रम नहीं, बल्कि एक बड़ी नीति युद्ध की शुरुआत है।


🔸 1. अब तक ‘मौन’ थे मोदी, अब ‘नई ईस्ट इंडिया कंपनी’ बोल सीधा प्रहार

5 अगस्त को जैसे ही अमेरिकी टैरिफ लागू हुए, मोदी ने अगले ही दिन अपने भाषण में कहा:

🗣️ “नई ईस्ट इंडिया कंपनी और भारत के करोड़ों किसानों-दुग्ध उत्पादकों के बीच, आपका मोदी खड़ा है।”

यह सिर्फ बयान नहीं था, एक रणनीतिक बाण था। बिना ट्रंप का नाम लिए, उन्हें ब्रिटिश उपनिवेशवाद से जोड़कर मोदी ने भविष्य की लड़ाई का मंच तैयार कर दिया

👉 यह स्पष्ट संकेत था कि अब भारत पीछे हटने वाला नहीं, बल्कि ‘चाणक्य नीति’ के तहत प्रतिरोध और पलटवार दोनों करेगा।


प्रधानमंत्री मोदी और व्लादिमीर पुतिन की बैठक – भारत की रणनीतिक नीति और अमेरिका से व्यापार तनाव पर प्रतिक्रिया
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🔸 2. दूसरा वार: “किसानों के हित से समझौता नहीं होगा”

ट्रंप की आर्थिक धमकियों के जवाब में पीएम मोदी ने और स्पष्ट कहा:

🗨️ “भारत अपने किसानों, मछुआरों के हितों के साथ कभी भी समझौता नहीं करेगा।
मैं जानता हूं कि व्यक्तिगत रूप से मुझे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी,
लेकिन मैं इसके लिए तैयार हूं।”

यह कूटनीति में साहस और आत्मबल का प्रदर्शन था। मोदी ये जता रहे थे कि व्यक्तिगत स्तर पर चाहे जो हो, राष्ट्रहित में कोई समझौता नहीं किया जाएगा।


🔸 3. अब पुतिन आ रहे हैं: यह चुप्पी ‘धैर्य-यज्ञ’ थी

इसी पृष्ठभूमि में पुतिन का भारत दौरा केवल एक शिष्टाचार भेंट नहीं, बल्कि एक भू-राजनीतिक संकेत है।

यह कृष्ण नीति है — शांति के बहाने शक्ति प्रदर्शन।
यह चाणक्य नीति है — धैर्य और रणनीति का मिलाजुला प्रयोग।

👉 जब अमेरिका दबाव बना रहा है, तब रूस से हाथ मिलाना साफ दर्शाता है कि भारत अब एक बहुध्रुवीय विश्व का केंद्र बनना चाहता है।

Chennai–Vladivostok Maritime Corridor, रक्षा सौदे, तेल आयात और परमाणु ऊर्जा जैसे मुद्दे इस यात्रा का केंद्र होंगे।

🔸 4. “जीतेगा तो भारत ही” — हर स्तर पर रणनीतिक तैयारी पूरी

मोदी सरकार का मंत्रिमंडल और नीति सलाहकार लंबे समय से टैरिफ वॉर की तैयारी में जुटे हुए थे। यह सिर्फ जवाब देने की नहीं, बल्कि अमेरिका और ट्रंप को उनके ही फैसलों में उलझाने की रणनीति थी।

यह वही नया भारत है — जो अब डरता नहीं, दहाड़ता है
जो केवल मित्रता ही नहीं, लड़ाई भी पूरी ऊर्जा के साथ करता है।

भारत की यह नीति दर्शाती है: “दबाव में नहीं, अब निर्णय में हैं हम।”

अमेरिका द्वारा 50% टैरिफ थोपने के बाद भी भारत के पास विकल्प तैयार थे — रूस से ऊर्जा व्यापार, वैकल्पिक ट्रेड कॉरिडोर, रणनीतिक साझेदारियों का विस्तार — ये सब चुपचाप लेकिन सटीक तैयारी का हिस्सा थे।


📌 विश्लेषण: यह केवल व्यापार नहीं, रणनीतिक संतुलन की लड़ाई है

  • अमेरिका की नीति: भारत को आर्थिक हथियारों से झुकाना।

  • भारत की नीति: धैर्य, चतुराई और साझेदारियों से जवाब देना।

  • पुतिन की भारत यात्रा: भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता का प्रदर्शन

यह युद्ध तोड़ने के लिए नहीं, नई व्यवस्था बनाने के लिए है।


🤔 विचार के लिए प्रश्न

क्या भारत अब केवल प्रतिक्रिया देने वाला राष्ट्र नहीं, बल्कि वैश्विक नीति निर्धारण में अग्रणी भूमिका निभा रहा है?
क्या यह चाणक्य नीति भारत को वाकई एक "विकासशील नहीं, निर्णायक शक्ति" बनाएगी?


📝 निष्कर्ष

यह दौर भारत की विदेश नीति का सबसे निर्णायक मोड़ हो सकता है।
मोदी की नीति अब “मौन सहनशीलता” नहीं, बल्कि “नीति युद्ध” का हिस्सा है।
और तय मानिए — झुकना अब किसी और को है।


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