SSC परीक्षा विवाद - कितनी ही उम्मीदों का गला घोंट दिया आपने, शासन व्यवस्था !
लोग पढ़ाई करने में लगभग आधी ज़िंदगी निवेश कर देते हैं, और अगर इसमें उनका भविष्य नहीं बनता है,
तो उनकी ज़िंदगी लगभग बर्बाद हो चुकी होती है।
ऐसे में लोगों की ज़िंदगियों से खिलवाड़ एक इतना बड़ा अपराध है कि यह क्षमा के योग्य नहीं है।
ग्लानि की भावना घेर लेती है युवाओं को?
जब उनके उम्र बच्चे कमाने लगते हैं, तब ये अभी भी पढ़ाई कर रहे होते हैं।
घर से दूर, अपने समय के परिवर्तन के लिए मेहनत करते हैं।
पिता जिसकी उम्र आराम करने की होती है, अभी तक ज़िम्मेदारी का बोझ उठाए है,
इस उम्मीद में कि बच्चे एक दिन सुख का सूरज उगाएंगे, परिवार की किस्मत बदलेगा।
लेकिन जब इतने संघर्षों के बाद भी व्यवस्था उनके साथ अन्याय करती है,
तो ये सिर्फ एक अवसर की हत्या नहीं, एक जीवन की हत्या होती है।
कितनी ही उम्मीदों का गला घोंट दिया आपने, शासन व्यवस्था!
क्या इसका कोई हिसाब है आपके पास?
कितने बच्चों के भविष्य की लाशें आपके सिस्टम पर बोझ बनकर पड़ी हैं?
शिक्षा व्यवस्था में भ्रष्टाचार SSC Scam |
तानों की चोट भी सहते हैं ये बेबस युवा —
हम सामाजिक स्तर पर इसे "अन्याय" कहकर आगे बढ़ जाते हैं,
पर एक अकेला पढ़ता-लिखता युवा जब
पड़ोसियों और रिश्तेदारों के बीच खड़ा होता है,
तो तानों की कड़वाहट ज़रूर उसके कानों तक आ ही जाती हैं।
वो कुछ कह नहीं पाता...
नज़रों से बचकर निकल जाता है —
जैसे उसने कोई गुनाह कर दिया हो
आख़िर ये अपराधबोध भरा किसने?
क्यों पढ़ाई करने और अच्छा जीवन चाहने की इच्छा एक अपराध बन गई?
क्या ये ख्वाहिश रखना वाकई कोई अपराध है?
उस समय उसके मन की हालत कुछ ऐसी होती है
जैसे उसने कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो,
चोर भी चोरी करके नहीं शरमाता,
क्योंकि उसके भीतर का इंसान मर चुका होता है।
लेकिन ये युवा ...
हर ताना, हर असफलता, हर चुप्पी उन्हें भीतर तक आहत कर देती है।
इनके मन की पीड़ा शब्दों में कह पाना कठिन है,
क्योंकि ये आवाज़ नहीं,
एक भीतर की चीख होती है —
जो हर रोज़ दब जाती है, बस आहत हो कर रह जाती है।
जो हर रोज़ दब जाती है, बस आहत हो कर रह जाती है।
क्या शासन भी सोया है?
आख़िर कब इनकी सुनी जाएगी?
कौन समझेगा इन पीड़ाओं को?
किसका हृदय इस बात पर पिघलेगा कि "मैं वर्तमान हूँ इस देश का और भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं होने दूंगा?"
सरकार से एक उम्मीद है —
हमने वर्षों तक पढ़ाई सिर्फ नौकरी के लिए नहीं,
स्वाभिमान के लिए की है।
हम चाहते हैं कि हमें हमारे कर्म और काबिलियत के आधार पर पहचाना जाए,
न कि भ्रष्ट व्यवस्था की लापरवाही से कुचला जाए।
स्वाभिमान यही कहता है —
भीख नहीं, हक चाहिए। दया नहीं, न्याय चाहिए।
✍️ स्वाभिमान ...
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